Wednesday, November 10, 2010

तुम्हारी निशब्दता !!!!!

ये तुम्हारी निशब्दता
कुछ न कहते हुए  भी,
कुछ न कुछ कह जाती है,
और मै सुनती हु
 सुन कर फिर से निशब्द हो जाती हु!

ये तुम्हारी  निशब्दता ,
बर्फ के जैसी  ठंडी  होती है,
मेरी तन सिहर उठता है
और  मन पिघलने लगता है !

मै जानती हु,
अब मेरी सीमा मुझे रोकती है,
मै जानती हु
मुझे रुकना पडेगा,

पर तेरी यह निशब्दता
मेरी हर अंग  को अर्थ देती है
मेरे रोम रोम को शब्दों से भर देती है

ये तुम्हारी  निशब्दता
कुछ न कहते हुए  भी,
कुछ न कुछ कह जाती है
और मै सुनती हु
 सुन कर फिर से निशब्द हो जाती हु

Monday, October 18, 2010

तुम कहते हो

तुम कहते हो की मै रुक जाऊ,
तुम कहते हो  की मै ही झुक जाऊ,
तुम मांगते हो मुझ से संपूर्ण समर्पण ,
और चाहते हो मेरा हर क्षण, 

जब तुम यह सब कहते हो,
जब तुम यह  सब मांगते हो,
तब मै चुपके से
तुम्हारी  आँखों मै झांकती हु
और
खोजती हु अपने लिया
बस थोडा सा प्रेम
और थोडा सा अपनापन,

पर तुम देते हो मुझे सूनी सी मुस्कान,
और एक धुन्दला सा अपनापन,
और मै समझ नहीं पाती
फिर क्यों कर  दू मै तुमपर 
अपना सब कुछ समर्पित!!!!!!!

Wednesday, October 13, 2010

समय कहाँ

समय कहाँ  की मै कह जाऊ
समय कहाँ  की तुम सुन  जाओ !

अपने जीवन के हर क्षण  मै,
इस मानव रुपी ढांचे को
अन्न जल से सींच रही हु,

और यह क्रम चलता रहता है!
 नित नित बढता रहता है!

तब हे मेरे मनं , तुम ही  कहो
समय कहाँ  की मै कुछ कहा दू
समय कहाँ  की तुम कुछ सुन जाओ ! ! !

Saturday, September 25, 2010

मेरी बेटी के लिया


तू मेरे प्यारी बेटी,
आज है सबकी दुलारी बेटी !

पर कल जब तू थी  सिर्फ मेरे
और थी सिर्फ मेरे भीतर ,
तब कोई नहीं चाहता था
तुझ जैसे  दुलारी बेटी !

आज जब तुम हो पास सबके,
और करती हो मीठी शैतानी,
तब बन जाती हो सबकी
प्यारी प्यारी दुलारी बेटी !

तुमने मुझको  रिश्ता  दे दिया,
तुमने दे दिया मेरा बच्चपन,
खिलोनो का अर्थ तुम से सिखा
तुमने सिखाया  क्या होता समर्पण !

अब  भी तुम मुझमे रहती
और मै तुम मे समायी हु,
फिर भी लोग क्यों कहते है
तुम मेरे नहीं परायी हो !

पर कोई कुछ भी कहे,
हम तुम हमेशा साथ रहे,
तू मेरी प्यारी सी बेटी
मेरी रानी दुलारी बेटी ! ! !