Monday, October 18, 2010

तुम कहते हो

तुम कहते हो की मै रुक जाऊ,
तुम कहते हो  की मै ही झुक जाऊ,
तुम मांगते हो मुझ से संपूर्ण समर्पण ,
और चाहते हो मेरा हर क्षण, 

जब तुम यह सब कहते हो,
जब तुम यह  सब मांगते हो,
तब मै चुपके से
तुम्हारी  आँखों मै झांकती हु
और
खोजती हु अपने लिया
बस थोडा सा प्रेम
और थोडा सा अपनापन,

पर तुम देते हो मुझे सूनी सी मुस्कान,
और एक धुन्दला सा अपनापन,
और मै समझ नहीं पाती
फिर क्यों कर  दू मै तुमपर 
अपना सब कुछ समर्पित!!!!!!!

Wednesday, October 13, 2010

समय कहाँ

समय कहाँ  की मै कह जाऊ
समय कहाँ  की तुम सुन  जाओ !

अपने जीवन के हर क्षण  मै,
इस मानव रुपी ढांचे को
अन्न जल से सींच रही हु,

और यह क्रम चलता रहता है!
 नित नित बढता रहता है!

तब हे मेरे मनं , तुम ही  कहो
समय कहाँ  की मै कुछ कहा दू
समय कहाँ  की तुम कुछ सुन जाओ ! ! !