Wednesday, November 10, 2010

तुम्हारी निशब्दता !!!!!

ये तुम्हारी निशब्दता
कुछ न कहते हुए  भी,
कुछ न कुछ कह जाती है,
और मै सुनती हु
 सुन कर फिर से निशब्द हो जाती हु!

ये तुम्हारी  निशब्दता ,
बर्फ के जैसी  ठंडी  होती है,
मेरी तन सिहर उठता है
और  मन पिघलने लगता है !

मै जानती हु,
अब मेरी सीमा मुझे रोकती है,
मै जानती हु
मुझे रुकना पडेगा,

पर तेरी यह निशब्दता
मेरी हर अंग  को अर्थ देती है
मेरे रोम रोम को शब्दों से भर देती है

ये तुम्हारी  निशब्दता
कुछ न कहते हुए  भी,
कुछ न कुछ कह जाती है
और मै सुनती हु
 सुन कर फिर से निशब्द हो जाती हु