Thursday, October 26, 2017

खाली प्लेट

खाली प्लेटो सी अपनी ज़िंदगी मे वो रोज़ कुछ न कुछ भरने कीे कोशिश करती रहती है। कभी आलू का परांठा कभी दाल चावल,कभी सब्जी रोटी।

      पता नही क्यों ,फिर भी उसे अपनी थाली हमेशा खाली सी नज़र आती है। शायद उसे एहसास है कि उसकी थाली किसी और ने भरी है। किसने?? पापा कहते थे,हमारी थाली भगवान भरते है,पर ऐसा लगता तो नही है।

       रीमा यह सब सोचते हुए खाने के मेज़ साफ कर रही थी।
      
       पता नही क्यों,आजकल वो यह सब सोचने लगती थी।कभी सोचती ,क्या उसकी माँ भी यही सब सोचती होगी। कभी उन्होंने उससे ऐसी कोई बात कही तो नही। हमेशा यह सिखाती रही,सब की खाली थाली भर्ती रहो, अपने लिया चाहे कुछ बचे न बचे।
    
      रीमा को भी यही अच्छा लगने लगा था। सब को खिला कर खाना।

      पर आजकल सब बदल सा गया है। वो सोचने लगी है।

     निखिल ने कहा फेसबुक चलाया करो।आजकल सब चलते है।रीमा फेसबुक चलाने लगी है। नए दोस्त बनाने लगी है।

    कोई पाबंदी नही है।निखिल को कोई प्रॉब्लम नही है। वह अपने मे खुश रहने वाले इन्सानों में से है। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।
   
फिर रीमा को अपनी थाली इतनी खाली क्यों लगने लगी है।सब कुछ तो है घर में। जितना ज़िन्दगी को खुशहाल बनाने के लिए जरूरी है। फिर क्यों उसने सोचना शुरू कर दिया है।

            कल अहमद से चैट कर रही थी। प्रगतिशील युवक कहलाना उसे पसंद है।शादीशुदा है।दो बच्चे है। ओह, बच्चे नही लड़के है।जैसा उसे कहना पसंद है। पत्नी अच्छी है।उसकी पसंद का खाती है,पहनती है, सोती है।फरमाबरदार है।

                     पत्नी को फेसबुक चलाने कीे आज़ादी देना अहमद के अनुसार ,उसके प्रगतिशील होने की सबसे बड़े निशानी है।और तो और ,अहमद ने कभी अतिया से उसका पासवर्ड भी नही पूछा।क्या बात है। इस बात पर अहमद को नाज़ है। उफ्फ, रीमा फिर खाली प्लेटो को देखने लगी।

          लूसिंडा से करीब एक महीना पहले दोस्ती हुई थी फेसबुक पर। आयरिश है। फेमिनिस्ट सिंगल मदर कहलाना पसंद है उसे।
                              फेमिनिज्म किसको कहते है,उससे बात करने के बाद ही समझने की कोशिश मे लगी है रीमा।

          एक बेटी है लूसिंडा की। बड़ी प्यारी है।जैसे सारे अंग्रेज़ बच्चे हिन्दुस्तानियो को प्यारे लगते है।इसलिए नही की वो बच्चे होते है,पर इसलिए कि वो अंग्रेज़ बच्चे होते हैै। शायद गोरी चमड़ी का आकर्षण है।

         लूसिंडा बताती है,पति अच्छा था।पर हाउस हसबैंड नही बनना चाहता था। लूसिंडा चाहती थी सिर्फ वही जॉब करे और पति घर से भी कोई और काम न करे। सिर्फ और सिर्फ बच्चा और घर सम्हाले।जैसा उसकी सारी सहेलियों के पति करते है।वो नही माना। तलाक हो गया।
                     
                     पति बेटी को अपने साथ ले जाना चाहता था क्योंकि वो घर से ही काम करने वाला था।
लूसिंडा ने नही दिया। उसका फेमिनिज्म इसकी इज़ाज़त नही देता था।

अब हालात यह है कि बेटी सारा दिन क्रेच में रहती है और लूसिंडा जॉब पर। उफ्फ,रीमा फिर खाली प्लेटो को देखने लगी।

         एक दिन नई फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी। कोई वेणु प्रसन्ना की थी। असेप्ट कर ली। क्यों नही। रीमा को सिर्फ बात करने के लिए कोई चाहिए था जो साफ सुथरी बात कर सके।फिर क्या फर्क पड़ता है कि वो कहा रहता है या रहती है।

         बात होने लगी। वेणु को हिंदी ठीक से नही आती थी,पर उसकी अंग्रेज़ी अच्छी थी। जैसे बहुत सारे दक्षिण भारतीय लोगो की होती है।
                                  वो अविवाहित था। माता पिता चेन्नई मे रहते थे।खुद बंगलौर( ओह्ह! बंगलूरू) मे सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। अकेला रहता था। अंतर्मुखी था इसलिए इंटरनेट पर बात करना ज्यादा पसंद था।

          रीमा को सबसे अच्छी बात यह लगती थी कि वो अपने को किसी भी फ्रेम में नही रखता था।न प्रगतिशील, न धार्मिक,न नास्तिक और न आस्तिक। अपने बारे मे कम ही बात करता। रीमा के बारे मे ज्यादा पूछता रहता।

          रीमा को वो लड़का अच्छा लगता।बात करना पसंद आता। धीरे - धीरे बातें बढ़ती गई और निजी होती गईं।

पर रीमा को अपनी हद का ख्याल हमेशा रहता।

वेणु जब कहता कि वो बेहद सुंदर है तो वो बात को मज़ाक में टाल जाती। वो कहता ,वीडियो कॉल पर बात करते है,वो हंस कर मना कर देती।जब घर का पता मांगता तो वो साफ इंकार कर देती।

ऐसे ही छहः महीने बीत गए। सब ठीक था। बाते हो रही थी।
 
एक दिन निखिल जल्दी घर आ गया। रीमा खुश थी।

घर का काम खत्म कर जब वो कमरे मे आई तो निखिल ने उसको एक सोने की चैन पहना ,बाहों में भर कर कहा कि वो अपने इम्तहान में पास हो गई है।
  
रीमा समझ नही पाई। उसने कब कोई फॉर्म भरा और एग्जाम देना मंजूर किया?

निखिल ने  मुस्कुराकर कहा वही वेणु है।

उफ्फ।  रीमा फिर खाली प्लेटो को देखने लगी है।