समय कहाँ की मै कह जाऊ
समय कहाँ की तुम सुन जाओ !
अपने जीवन के हर क्षण मै,
इस मानव रुपी ढांचे को
अन्न जल से सींच रही हु,
और यह क्रम चलता रहता है!
नित नित बढता रहता है!
तब हे मेरे मनं , तुम ही कहो
समय कहाँ की मै कुछ कहा दू
समय कहाँ की तुम कुछ सुन जाओ ! ! !
समय कहाँ की तुम सुन जाओ !
अपने जीवन के हर क्षण मै,
इस मानव रुपी ढांचे को
अन्न जल से सींच रही हु,
और यह क्रम चलता रहता है!
नित नित बढता रहता है!
तब हे मेरे मनं , तुम ही कहो
समय कहाँ की मै कुछ कहा दू
समय कहाँ की तुम कुछ सुन जाओ ! ! !
well written!
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