Wednesday, October 13, 2010

समय कहाँ

समय कहाँ  की मै कह जाऊ
समय कहाँ  की तुम सुन  जाओ !

अपने जीवन के हर क्षण  मै,
इस मानव रुपी ढांचे को
अन्न जल से सींच रही हु,

और यह क्रम चलता रहता है!
 नित नित बढता रहता है!

तब हे मेरे मनं , तुम ही  कहो
समय कहाँ  की मै कुछ कहा दू
समय कहाँ  की तुम कुछ सुन जाओ ! ! !

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